बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बौद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है, बौद्ध धर्मावलंबियों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन भगवान बुद्ध के जन्म, उनके ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण (मृत्यु) के दिन के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व वैशाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई महीने में आता है। यह दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक श्रद्धा और ध्यान का दिन होता है, क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध ने जीवन का वास्तविक अर्थ और ध्यान का मार्ग बताया था।
भगवान बुद्ध का जीवन :
भगवान बुद्ध का जन्म सिद्धार्थ के रूप में 563 ई.पू. में लुम्बिनी (जो वर्तमान में नेपाल में स्थित है) हुआ था। वे शाक्य कुल के राजकुमार थे, और उनकी माता का नाम महामाया और पिता का नाम राजा शुद्धोधन था। युवा सिद्धार्थ ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में भौतिक सुख-सुविधाओं का अनुभव किया, लेकिन उन्होंने संसार के दुखों को देखकर सांसारिक मोह-माया को त्याग दिया और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए आत्म-निर्वासन का रास्ता चुना।
बुद्ध ने 35 वर्ष की आयु में बोधगया (बिहार, भारत) में एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए निर्वाण प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने अपनी शिक्षाएं दीं, जिनमें दुखों का कारण, उनका निवारण और निरंतर अभ्यास के माध्यम से शांति की प्राप्ति के उपाय बताए गए।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व :
बुद्ध पूर्णिमा का पर्व भगवान बुद्ध के तीन महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है:
- जन्म : भगवान बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ था, जिसे बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है।
- ज्ञान प्राप्ति : बुद्ध ने बोधगया में तपस्या और ध्यान द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त किया और इसे ‘बोधि’ कहा।
- महापरिनिर्वाण : भगवान बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (उत्तर प्रदेश, भारत) में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया, जो उनके शारीरिक शरीर की मृत्यु का प्रतीक था।
इस दिन, बौद्ध अनुयायी भगवान बुद्ध के जीवन, उपदेशों और उनके योगदान को याद करते हैं और उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
पूजा और रीतियाँ :
बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध अनुयायी विशेष पूजा-अर्चना, ध्यान और भिक्षाटन करते हैं। इस दिन की कुछ प्रमुख रीतियाँ निम्नलिखित हैं:
- बुद्ध प्रतिमा की पूजा : बौद्ध मंदिरों में भगवान बुद्ध की प्रतिमा की पूजा की जाती है। भक्तगण फूल चढ़ाकर, अगरबत्ती जलाकर और दीपक जलाकर श्रद्धा अर्पित करते हैं।
- ध्यान और साधना : इस दिन विशेष ध्यान का आयोजन किया जाता है। बौद्ध अनुयायी अपने भीतर शांति और समर्पण का अनुभव करने के लिए ध्यान करते हैं।
- दान और सेवा : इस दिन को समाज सेवा और दान का दिन माना जाता है। बौद्ध अनुयायी निर्धन लोगों को भोजन और वस्त्र दान करते हैं। इसे बुद्ध की शिक्षा के अनुसार करुणा और प्रेम फैलाने के रूप में देखा जाता है।
- विहारों में समागम : बौद्ध अनुयायी इस दिन को मंदिरों और विहारों में एकत्रित होकर धार्मिक प्रवचन सुनने और चर्चा करने में बिताते हैं।
- चाँद को अर्पित करना : चाँद की पूजा भी इस दिन की एक प्रमुख परंपरा है, क्योंकि बुद्ध के अनुसार चाँद का आभा दिव्यज्ञान का प्रतीक है।
बौद्ध धर्म में बुद्ध पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व :
बुद्ध पूर्णिमा का दिन केवल भगवान बुद्ध की याद में नहीं होता, बल्कि यह दिन बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को आत्मसात करने का अवसर भी होता है। इस दिन विशेष रूप से “चार आर्य सत्य” और “आठगुणी मार्ग” पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जो भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का मूल हैं। ये सिद्धांत जीवन में शांति, सद्भावना और समृद्धि की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
– चार आर्य सत्य :
- जीवन में दुःख है (दुःख)
- दुःख का कारण इच्छाएँ और कर्म हैं (समुदय)
- दुःख का निवारण संभव है (निर्वाण)
- दुःख से मुक्ति का मार्ग आठगुणी मार्ग है (मार्ग)
– आठगुणी मार्ग : यह मार्ग सही दृष्टिकोण, सही इरादा, सही वाणी, सही कर्म, सही जीवनयापन, सही प्रयास, सही मानसिकता और सही ध्यान को समाहित करता है।
निष्कर्ष :
बुद्ध पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन, उपदेश और उनके द्वारा स्थापित शांति, प्रेम और करुणा के संदेश को फैलाने का पर्व है। यह दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक पुनः संकल्प लेने का अवसर होता है, ताकि वे अपने जीवन को शांति और संतुलन की ओर मार्गदर्शन करें। इस दिन हम सभी को भगवान बुद्ध के सिद्धांतों का पालन करने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम भी अपने जीवन में शांति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकें।